बैठी तनहा सोच रही थी,
जीवन का लेखा जोखा बुन रही थी ।
सर्द हवा का झोंका आया,
साथ अपने कुछ यादें लाया।
खो गई ,उन सुनहरी यादों में,
वो मौज, वो मस्ती,
वो बेफिक्री, वो पागलपन,
वो दोस्तों का काफिला,
वो सदा मिलते रहने का वादा।
वक्त गुज़रा-
आज मिलेंगे ;कल मिलेंगे; में बदलता गया,
बस यही सोचते-सोचते ; हर दिन गुज़रता गया,
कल- कल ,करते -करते; आज भी गँवा दिया ,
कल मिलेंगे ;कल मिलेंगे; बस यही होता गया।
वक्त यूहीं गुज़रता रहा,
हम बेखबर,बस सोचते रहे।
अरे!!!!
आज इतनी खामोशी क्यों है?
दोस्तों का काफिला इतना सुन्न क्यों है?
वो हंसना खिलखिलाना बंद क्यों है?
सुना है ,एक दोस्त बिछड़ गया है,
वक्त से पहले कहीं खो गया है,
क्या सोचा था ? क्या हो गया है?
बस यादों का समंदर रह गया है ।
वह बोलता था-
फिर मिलेंगे; मिलते रहेंगे,
पर खुद ही कहीं गुम हो गया है।
👌👌👌👏👏
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Thanks ☺
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Touching..
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Thanks ☺
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Awesome ma’am….😍😍😍
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Thanks☺
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Fantastic 👌👌👌👌👌
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Thanks a lot…
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Lovely…….. beautifully expressed…… Good Reminder to cherish and value people who are there…… Kal ka kya bharosa
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Cherish everyone…😊😊😊😊
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Beautifully expressed. Loved it
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Thank you so much…😊
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Wonderful thoughts
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